किसानों की मजबूती के बिना आत्मनिर्भर भारत का सपना मुमकिन नहीं

अखिल भारतीय पंचायत परिषद के पूर्वी दिल्ली स्थित मुख्यालय पंचायत धाम में गुरुवार, 24 दिसंबर को प्रेस वार्ता आयोजित किया गया था। इसमें दिल्ली बोर्डर पर कई हफ्तों से जारी धरने में शहीद हुए किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित किया गया। हैरत की बात है कि इस जनांदोलन में शहीद होने वालों की संख्या पैंतालीस पार हो चुकी है। किसान दिवस पर पंचायत परिषद में शहीद किसानों के प्रति मौन रख कर संवेदना प्रकट किया गया था। किसी लोकतंत्र में अन्नदाता का अपमान कतई अच्छा नहीं होता है। इस मामले में संवाद से ही समाधान निकालना चाहिए। संसद में समुचित बहस नहीं होने के कारण ही आज इन तीनों कानूनों पर घमासान मचा है। 


अखिल भारतीय पंचायत परिषद के वर्किंग प्रेसिडेंट डा. अशोक चौहान की अध्यक्षता में संपन्न हुई इस प्रेस वार्ता में संगठन मंत्री ठाकुर ध्यान पाल सिंह और पंचायत संदेश के प्रबंध संपादक कौशल किशोर ने सभी सवालों के जवाब देकर आत्मनिर्भरता की बात पर जोर दिया। आत्मनिर्भर भारत का सपना क्या किसानों और गांववासियों को मजबूत किये बगैर संभव है? यह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों की फसलों को खरीदने के तमाम सरकारी दावों की पोल खोल देती है। घोषणाओं के बावजूद देश भर में अब तक ऐसा मुमकिन ही नहीं हो सका है। कुल छह फीसदी किसानों को यह सुविधा मिलती है। इसकी वजह संबंधित राज्यों को बताया जाता है। भारतीय संविधान में कृषि राज्यों की सूची में शामिल है। यह एक ऐसे दौर की बात है जब किसानों की अस्मिता संकट में पड़ गई है। नतीजतन मान अपमान और जीवन मरण का ख्याल भूल कर आज किसान विरोध प्रदर्शन में लगे हैं। आज मध्य वर्ग की इस जनांदोलन से दूरी भी दिख रही है। इन्हें खाद्यान्नों के आयात का पूरा भरोसा है।


पंचायत धाम के प्रवक्ता कौशल किशोर ने कहा कि तालाबंदी के दौरान संसद में बराबर बहस किये बिना ही तीनों नए कानून पारित किये गये हैं। इससे लगता है कि ईक्कीसवीं सदी में लोकतांत्रिक मूल्यों का ख्याल रखना जरूरी नहीं है। यह इस सत्याग्रह में शहीद हुए किसान भाईयों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर है। आजादी के आंदोलन में भगत सिंह की शहादत पर तीन दिनों तक चुल्हा नहीं जला था। आज चालीस से ज्यादा लोग शहीद हो चुके हैं और कोई नतीजा नहीं निकल सका है। डा. अशोक चौहान ने कहा कि कृषि को ट्रेड बताने और कांट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने से देश के किसानों की नब्ज पर पूंजी का प्रभुत्व हावी होगा। केंद्र सरकार ने राज्यों को समय पर जीएसटी का हिस्सा नहीं भेज कर संविधान और कानून की तमाम गारंटी को फेल कर दिया। इस पर पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों की सरकारों ने भी भरोसा धूमिल होना ही जाहिर किया है। 


हरियाणा में अट्ठारह एकड़ जमीन पर खेती करने वाले किसान व अध्यापक जगदीश चौधरी ने भी अपनी बातें साझा किया। उन्होंने कहा, किसान धरती, प्रकृति और मानवता का शोषण करने के बदले पोषण ही करते हैं। आज भारत माता की पुकार और धरती माता की सेवा का आह्वान आमने सामने दिखता है। झारखंड की राजधानी रांची से आये वैज्ञानिक प्रभु नारायण ने भी अपनी पीड़ा व्यक्त किया। कभी-कभी जनांदोलन एक ऐसा मंच हो जाता है, जिसके इर्द-गिर्द असामाजिक तत्वों के सक्रिय होने की बात भी असंभव नहीं रह जाती है। ऐसी दशा में प्रशासन को मुश्किलों का सामना करना पडता है। उन्होंने यह भी कहा कि ग्राम पंचायतों को प्रस्ताव पास कर अपनी जमीन बचाना चाहिए। 


आज गांधी के हिन्द स्वराज पर चर्चा आवश्यक है। प्रेस वार्ता में शामिल कवि श्याम सुंदर सिंह इस पर बराबर बल दे रहे हैं। इस अवसर पर सेंट स्टीफंस कालेज में अर्थशास्त्र के विद्यार्थी रहे मनमोहन गुप्ता भी आवाज बुलंद करते हैं। तालाबंदी के कारण शिथिल हुई गतिविधियों को धीरे-धीरे शुरु किया जा रहा है। कोरोना वायरस का प्रकोप और तालाबंदी की रोक जारी रहने की दशा में बहरहाल ऐसा करना आसान नहीं है।

राज किशोर |