image from google
नवंबर के आखिर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गुरु नानक देव का 551वां प्रकाश पर्व दुनिया भर में मनाया गया। हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण की बढ़ते रफ्तार का असर तमाम पर्व-त्योहारों और उत्सव-आयोजनों पर व्यापक है। प्रदर्शन की जगह आस्था की प्रदर्शनविहीन होती तस्वीर ही उभरती है। इस अवसर पर सिखों का एक खास वर्ग ज्ञान गोदड़ी को राम मंदिर की तरह जनांदोलन में तबदील होने की तस्वीर पेश करता है। दरअ़सल इस गुरुद्वारा का संबंध गुरु नानक की पांच सौ पंद्रह साल पुरानी उस तीर्थयात्रा से है, जिसके लिए उन्होंने हरिद्वार की ओर रुख किया। सहारनपुर के कमीशनर ने 1978 में सौंदर्यीकरण के लिए इसे मांग लिया था। तभी से सिख यहां से बेदखल चले आ रहे हैं। सेवा और संगत का काम बंद है। इस दाग को धोने का प्रयास भी कई दशकों से चल रहा है। हाल की गतिविधियों व राम मंदिर आंदोलन की सफलता से खालसा पंथ की मुराद पूरी होने की क्षीण होती संभावना को बल मिलता है।
गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी के सौंदर्यीकरण का मामला प्रदेश सरकार की उदारता का अनूठा मामला है। नानक की तीर्थयात्रा से जुड़ा होने के बावजूद इसके निर्माण का सटीक व्यौरा पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है। तथापि बीसवीं सदी तक इसके मौजूद होने की बात पर कोई संदेह नहीं रह जाता है। तीर्थयात्रियों की लेखनी भी इस काम में मददगार साबित होती है। 1930 की साईकिल यात्रा का जिक्र करते हुए पटियालावाले भाई धन्ना सिंह लिखते हैं कि किस तरह की कठिनाइयों का सामना करते हुए तीन कमरों का यह छोटा गुरुद्वारा यात्रियों की सेवा में संलग्न है। हरिद्वार में हर की पौड़ी क्षेत्र को सुंदर विकसित कर इसे लौटाने की नीयत से प्रशासन ने इसे सत्तर के दशक में खाली कराया। इसके छह साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई। फलतः सिखों के खिलाफ व्यापक महौल बना और शासन-प्रशासन की मंशा भी बदल गई। यह सौंदर्यीकरण का काम पूरा होने पर अपनाई गई नीति के अवलोकन से स्पष्ट होता है। प्रशासन ने सिखों के खिलाफ स्काउट्स एंड गाइड को इस गुरुद्वारा की संपत्ति भी सौंप कर खड़ा कर दिया। इसके कारण तो सिखों और हिंदुओं के बीच वैमनस्य के बीज भी अंकुरित होते हैं। इसमें खाद पानी देने में लगी जमात में शामिल तमाम राजनीतिक दलों के अपने-अपने हित हैं। उत्तराखंड की जनसंख्या में चार फीसदी सिखों की आस्था का यह केंद्र राजनीतिक दलों की प्राथमिकता से कोसों दूर है। इसी अन्याय की वजह से सिख संगत डेढ़ दशक तक उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ बराबर संगठित होती रही। पिछले दो दशक से यह रोष प्रदर्शन उत्तराखंड सरकार के विरूद्ध चल रहा है।
अपने देश में राम मंदिर मामले में मिली सफलता से उत्साहित लोगों की कोई कमी नहीं है। हिन्दूओं का एक समूह पहले से ही काशी और मथुरा का राग आलाप रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में गुरु नानक देव की अयोध्या यात्रा के जिक्र पर विचार करना जरूरी है। इसी तीर्थयात्रा में अयोध्या की ओर कूच करने से पहले उन्होंने हरिद्वार में प्रवास किया था। तमाम इतिहासकारों ने नानक और तीर्थ पुरोहितों के बीच के एक संवाद का विशेष रूप से जिक्र किया है।
गंगा स्नान के दौरान उन्होंने पूर्व की ओर सूर्य को अर्घ्य देते देख कर पश्चिम की ओर जल अर्पित किया था। उन्होंने हरिद्वार से सूर्य व पंजाब के बीच की दूरी का हवाला देकर पंडितों को निशब्द कर दिया था। भारतीय समाज में विभिन्न पंथों को मानने वाले शांति और सद्भाव के साथ रहते हैं। आतंक और मजहब के बीच का सूत्र खंगालने के आधुनिक दौर में सिखों को उकसाने का यह मामला राजनीति के पेंच में उलझता ही जा रहा है। तर्कशक्ति और ज्ञान के बूते पांडित्य का प्रदर्शन करने वाली जमात के लोग नानक के विचारों से भले सहमत नहीं हों, लेकिन इस पूंज को खत्म करना मुमकिन नहीं है। ज्ञान गोदड़ी गुरु नानक के हरिद्वार प्रवास की निशानी है। इसलिए यह सिखों की अस्मिता का सवाल हो जाता है। इन बातों पर विचार कर सरदार जगजीत सिंह जैसा हिन्दुस्तानी न्यायालय की ओर रुख करता है।
वस्तुतः यह स्थानीय प्रशासन का रचा एक ऐसा तिलिस्म है, जिसके कारण तीर्थ पुरोहितों और सिखों के बीच तनाव कायम होता है। यदि ऐसा ही नहीं होता तो इस गलती को अब तक सुधार लिया गया होता। नित्यानंद स्वामी से लेकर त्रिवेन्द्र सिंह रावत तक सूबे के आठ मुख्यमंत्रियों की स्थिति यही बताती है। ऐसी दशा में सवाल उठता है कि क्या प्रशासन इस अन्याय और अक्षमता को ढ़कने के लिए सिखों को आतंकवादी साबित करने का उपक्रम करेगा? इस विरोध प्रदर्शन में शामिल सिखों की गिरफ्तारियों और उनके प्रति प्रशासन के रवैये पर गौर करने से इस आशंका को खारिज कर पाना आसान नहीं होगा। कानून के राज को प्रशासन ने ठेंगा दिखा कर गुरु नानक के अनुयायियों को न्याय के लिए गांधी के शांतिपूर्ण सत्याग्रह की ओर प्रेरित किया है। इस उलझन को शांति से सुलझाना ही बेहतर विकल्प है।
कौशल किशोर |